सोर घाटी की लय और डोटी अंचल की ठसक में ऋतुरैन्न गाकर कुमाउनी लोकगीतों को विशेष पहचान देनेवाली कबूतरी देवी 73 वर्ष की उम्र में इस नश्वर संसार को छोड़कर चले गयी।
काली कुमाऊँ में देव राम और देवकी देवी के घर में जन्मी कबूतरी देवी को पारंपरिक लोकगीत विरासत में मिले।
पति दीवानी राम के प्रोत्साहन और भानु राम सुकोटी के निर्देशन में उन्होंने ससुराल में लोकगीत का सिलसिला जारी रखा। वो बताती थी के पहले पहल तल्ला ढिकुरी के हेमराज ने उन्है मंच दिया। बाद में हेमंत जोशी द्वारा अल्मोड़ा में सम्मानित किया गया। बाद में लखनऊ आकाशवाणी से ऋतुरैंन उनकी आवाज में इन फिजाओं में गूंजे। बम्बई आकाशवाणी में उन्है आमंत्रित किया गया। फिर नजीबाबाद और अल्मोड़ा केंद्र में उनके दर्जनों गीत रिकॉर्ड किए गए। देश के तमाम हिस्सों में उन्होंने न्योली ,छपेली गाकर जनमानस को खूब रिझाया।
उनके गाये गीत हैं
बरसो दिन को पैंलो म्हैना,
पहाड़ो ठंडू पाणी, मैसो दुःख क्वे जानी ना, चामल बिलोरा,
उनके तीन बाचे हैं 2 बेटियां और 1 बेटा, बेटा बचपन में ही घर छोड़कर चला गया।
उनकी दीदी का बेटा है पवनदीप राजन हैं
अधिक जानकारी के लिए लिंक देखे।
https://umjb.in/gyankosh/kabutari-devi--first-women-folk-singer
Interview by :- Neeraj Bhatt
Sampadan :- Shashank Rawat
Video by :- Umjb
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